नई दिल्ली। पाकिस्तान और चीन, दो ऐसे देश जिनके बारे में अक्सर बातें होती हैं। जहां चीन अक्सर खुद को पाकिस्तान का ‘आयरन ब्रदर’ साबित करने में लगा रहता है तो वहीं पाकिस्तान भी अपने बड़े भाई की तारीफ करने से पीछे नहीं हटता है। लेकिन अब इनके रिश्तों में दरार आ गई है। एक ओपिनियन आर्टिकल के मुताबिक पाकिस्तान और चीन के बीच इन दिनों खासा तनाव है. यह तनाव इतना ज्यादा है कि अब चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) के प्रोजेक्ट्स भी मुश्किल में घिरते जा रहे हैं।
CPEC,पाकिस्तान के लिए बड़ी मुसीबत
सीपीईसी (CPEC) को पहले ही पाकिस्तान की मीडिया और एक खास वर्ग की तरफ से आलोचना का सामना करना पड़ा है। कई प्रोजेक्ट्स को लेकर हो रही फंडिंग हमेशा ही सवालों के घेरे में रही है. कई मेगा प्रोजेक्ट्स जिन पर सीपीईसी के तहत काम चल रहा है, उन पर आलोचकों की खासी नजर है। साल 2015 में सीपीईसी का ऐलान किया गया था। तब इसे एक गेमचेंजर करार दिया गया था। लेकिन हकीकत में यही सीपीईसी पाकिस्तान के लिए बड़ी मुसीबत बनता जा रहा है।
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पाकिस्तान में एक वर्ग का मानना है कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के इस फेवरिट प्रोजेक्ट की वजह से देश कर्ज के बोझ तले दब गया है। साथ ही सीपीईसी के प्रोजेक्ट्स में भी पिछले कुछ वर्षों से कोई तरक्की नहीं हुई है। ये प्रोजेक्ट्स जहां के तहां हैं। यह बात भी पाकिस्तान के एक तबके को खासी अखर रही है चीन समेत बस कुछ ही देश यहां पर निवेश करना चाहते हैं।
बना गले की हड्डी, पाकिस्तान का रेल प्रोजेक्ट
मॉर्डन डिप्लोमैसी में जियोपॉलिटिकल एनालिस्ट फैबियन बाउसार्त ने एक आर्टिकल लिखा है। इस आर्टिकल में उन्होंने कहा है कि पाकिस्तान और चीन के अधिकारियों के बीच हाल ही में कुछ मीटिंग्स हुई हैं। Covid-19 की वजह से CPEC प्रोजेक्ट्स पर खासा असर पड़ा है और साथ ही अब पाकिस्तान की उम्मीदें भी इससे कम हो गई हैं।
इसकी वजह से ही लगातार मीटिंग्स का दौर चला है। पिछले कई वर्षों से पाकिस्तान को 8.6 मिलियन डॉलर की मेन लाइन-1 प्रोजेक्ट का लॉलीपॉप दिखाया जा रहा है।
ये प्रोजेक्ट पाकिस्तान रेलवे का मुख्य प्रोजेक्टस है। जबकि पाकिस्तान, लगातार चीन से अपील कर रहा है कि वो इस प्रोजेक्ट की फंडिंग करे। वहीं चीन की तरफ से प्रोजेक्ट को लेकर कोई वादा नहीं किया गया है।
माना जा रहा है कि चीन, इस रेल प्रोजेक्ट की फंडिंग करने से बच रहा है। उसको इस बात का डर है कि स्थानीय राजनीति की वजह से प्रोजेक्ट में निवेश किया गया पैसा बर्बाद हो सकता है।
दोनों देशों में तनाव, प्रोजेक्ट्स को लेकर
सीपीईसी पर ज्वॉइन्ट कोऑपरेशन कमेटी (जेसीसी) नजर रखती है। इस कमेटी अध्यक्षता पाकिस्तान के प्लानिंग मिनिस्टर करते हैं और चीन के नेशनल डेवलपमेंट एंड रिकॉर्म कमीशन के उपाध्यक्ष भी इसमें शामिल होते हैं। जेसीसी की पहली मीटिंग अगस्त 2013 में हुई थी। इसके बाद कई मीटिंग्स हुईं और आखिरी मीटिंग नवंबर 2019 में हुई थी. 10वीं मीटिंग साल 2020 के शुरुआत में होने वाली थी।
कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया है कि सिर्फ इस मेगा रेल लाइन प्रोजेक्ट की वजह से चीन परेशान हो, ऐसा नहीं है। कई ऐसे प्रोजेक्ट्स हैं जो स्पेशल इकोनॉमिक जोन्स में जारी हैं. सीपीईसी के दूसरा चरण जो साल 2020 से 2025 के बीच होना था, उसमें चीन की कई कंपनियां पाकिस्तान में कुछ खास चीजों का उत्पादन करने वाली थीं।
पाकिस्तान को थी उम्मीदें, चीन से
अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) इस बात पर अड़ी है कि पाकिस्तान को अब किसी भी तरह का कोई कमर्शियल लोन नहीं मिलेगा. ऐसे में पाकिस्तान की नजरें अपने प्रोजेक्ट के लिए बस चीन पर ही टिकी थीं। फैबियान ने अपने रिपोर्ट में कहा है कि 17 प्रोजेक्ट्स ऐसे हैं जो 13 बिलियन डॉलर के हैं और जिन्हें सीपीईसी के तहत पूरा होना है। वहीं 21 प्रोजेक्ट्स ऐसे हैं जो अधूरे हैं और जिन पर 12 बिलियन डॉलर की लागत आई है। इन प्रोजेक्ट्स पर ग्वादर पोर्ट का प्रोजेक्ट भी शामिल है। इसके अलावा ईस्टबे एक्सप्रेसवे और थाकोट-रायकोट सेक्शन पर भी काम अटका हुआ है।
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