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Thursday, March 28, 2024

Guru Nanak Jayanti: Prakash Parv के रूप में क्यों मनाते है गुरु नानक जयंती?

नई दिल्ली। गुरुनानक देव जी की जयंती (Guru Nanak Jayanti) इस साल 19 नवंबर 2021 यानी आज मनाई जा रही है। हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को गुरु नानक जी (Guru Nanak Jayanti) के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। इसे गुरुपरब या प्रकाशपर्व (Prakash Parv) भी कहते हैं। आज 552वां प्रकाश पर्व (Prakash Parv) है। यह पर्व सिखों का सबसे प्रमुख पर्व है, जिसे दुनिया भर के सिख गुरुद्वारों में मत्था टेककर, नगर कीर्तन आयोजित कर और लंगर लगाकर मनाते हैं।

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फूलों और रोशनी से सजा गुरुद्वारा

इसे प्रकाश उत्सव या गुरु परब (Prakash Parv) भी कहा जाता है। गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 में लाहौर के पास राय भोई की तलवंडी (अब ननकाना साहिब) में हुआ था। गुरु नानक जयंती (Guru Nanak Jayanti) उत्सव पूर्णिमा दिवस से दो दिन पहले शुरू हो जाता है, जिसमें अखंड पाठी, नगर कीर्तन जैसे अनुष्ठान शामिल हैं। गुरुद्वारों को फूलों और रोशनी से सजाया जाता है। वहीं, समारोह के वास्तविक दिन से पहले अनुष्ठानों की पूरी श्रृंखला होती है। पहले दिन अखंड पाठ होता है जो जयंती से दो दिन पहले गुरुद्वारों और घरों में होता है। मुख्य दिन अमृत वेला में उत्सव शुरू होता है।

 

Prakash Parv

 

गुरु नानक जयंती को क्यों कहा जाता है प्रकाश पर्व?

नानक देव जी (Guru Nanak Jayanti) ने पूरे जीवन में दूसरों के हित के लिए काम किया था। उन्होंने हमेशा समाज में बढ़ रही कुरीतियों और बुराइयों को दूर किया और लोगों के जीवन को सुखद बनाने का काम किया। नानक देव ने दूसरों के जीवन को संवारने के लिए अपने पारिवारिक जीवन और सुख की चिंता नहीं की थी। दूर दूर यात्राएं करते हुए वे बस दूसरे लोगों के जीवन में प्रकाश भरते रहे। इसलिए सिख समुदाय के लोग नानक को भगवान और मसीहा मानते हैं और उनके जन्मदिवस को प्रकाश पर्व के तौर पर मनाते हैं।

 

अंगददेव को बनाया था अपना उत्तराधिकारी

नानक देव ने अपना पूरा जीवन मानव सेवा में लगा दिया था। इस दौरान उन्होंने दूर देशों जैसे अफगानिस्तान, ईरान आदि की भी यात्राएं कीं और लोगों के मन में मानवता की अलख जगाई। 1539 में करतारपुर (जो अब पाकिस्तान में है) की एक धर्मशाला में उन्होंने अपने प्राण त्यागे। लेकिन मृत्यु से पहले उन्होंने अपने शिष्य भाई लहना को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था, जो बाद में सिखों के दूसरे गुरु अंगददेव कहलाए।
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Archana Kanaujiya
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