नई दिल्ली। बच्चों को कोरोना से बचाने के लिए हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक कंपनी ने नेज़ल वैक्सीन (Nasal Corona Vaccine) का ट्रायल शुरू कर दिया है। इस वैक्सीन के जरिए नाक के रास्ते डोज दी जाएगी। डब्ल्यूएचओ (WHO) की शीर्ष वैज्ञानिक सोम्या स्वामीनाथन के मुताबिक, बच्चों को कोरोना वायरस (Corona Virus) से बचाने में यह नेज़ल वैक्सीन कारगर साबित हो सकती है।
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हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक कंपनी ने नेज़ल वैक्सीन का ट्रायल शुरू कर दिया है। इस वैक्सीन के जरिए नाक के जरिए डोज दी जाएगी, जो कोरोना को मात देने में कारगर साबित हो सकती है। कंपनी के मुताबिक नेजल स्प्रे (Spray) की सिर्फ 4 बूंदों की जरूरत होगी। नाक के दोनों छेदों में दो-दो बूंदें डाली जाएंगी। क्लीनिकल ट्रायल्स रजिस्ट्री के अनुसार, 175 लोगों को नेजल वैक्सीन दी गई है। इन्हें 3 ग्रुप में बांटा गया है। पहले और दूसरे ग्रुप में 70 वालंटियर रखे गए हैं और तीसरे में 35 वालंटियर रखे गए । ट्रायल के नतीजे अभी आने बाक़ी है।
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नेज़ल वैक्सीन को नाक के ज़रिये दी जाती है। माना जा रहा है कि ये इंजेक्शन वाली वैक्सीन के मुकाबले ज्यादा असरदार है। ऐसे में साइंटिस्ट सौम्या स्वामीनाथन ने कहा कि ज्यादा से ज्यादा स्कूल टीचर को वैक्सीन लगाने की जरूरत है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि बच्चों को तभी स्कूल भेजना चाहिए जब कम्युनिटी ट्रांसमिशन का खतरा कम हो। स्वामीनाथन ने आगे कहा, ‘भारत में बनी नेज़ल वैक्सीन बच्चों के लिए गेम चेंजर साबित हो सकती है। इसे बच्चों में लगाना आसान होगा। साथ ही ये रेस्पिरेटरी ट्रैक में इम्यूनिटी बढ़ाएगी।’
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भारत कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर का कहर झेल रहा है। भारत में बच्चों को सर्वाधिक प्रभावित करने की आशंका जताने वाली तीसरी लहर को लेकर वैज्ञानिक चेतावनी जारी कर चुके हैं। बच्चों को प्रभावित करने की आशंका के बीच यह जानना कम जरूरी नहीं होगा कि दुनिया में 12 साल से कम उम्र के बच्चों को फिलहाल कोरोना की वैक्सीन (Vaccine) नहीं लगाई जा रही है। वह भी तब जब देश में 18 साल से कम उम्र के लोगों के लिए किसी भी वैक्सीन को हरी झंडी नहीं मिली है। ऐसे में WHO की चीफ साइंटिस्ट सौम्या स्वामीनाथन (Saumya Swaminathan) ने कहा है कि कोराना की नेज़ल वैक्सीन बच्चों के लिए गेमचेंजर साबित हो सकती है।
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शनिवार को केंद्र सरकार ने कहा कि बच्चे संक्रमण से सुरक्षित नहीं हैं, लेकिन फिलहाल वायरस का असर बच्चों पर कम हो रहा है। दुनिया और देश के आंकड़ों पर नजर डालें तो सिर्फ 3-4 % बच्चों को अस्पताल में भर्ती कराने की नौबत आती है। नीति आयोग (स्वास्थ्य) के सदस्य वीके पॉल ने कहा, ‘अगर बच्चे कोविड से प्रभावित होते हैं, तो या तो कोई लक्षण नहीं होंगे या कम से कम लक्षण होंगे। उन्हें आम तौर पर अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं होती है. लेकिन हमें 10-12 साल के बच्चों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है’।
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