नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra MOdi) ने तमाम सियासी अटकलों को ध्वस्त करते हुए अपने कैबिनेट का विस्तार कर लिया है। बिहार से आरसीपी सिंह और पशुपति पारस को उनके मंत्रालय भी सौंप दिया गया है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल आखिर बिहार एनडीए से जदयू के दिग्गज नेता ललन सिंह (Lalan Singh) को मौका क्यों नहीं मिला। केंद्रीय मंत्री बनने की रेस में शामिल ललन सिंह एकाएक रेस से बाहर कैसे हो गए। आखिर सीएम नीतीश क्या मजबूरी रही जो मोदी कैबिनेट में एक सीट लेने पर भी राजी हो गए।
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दो साल बाद मोदी कैबिनेट में जदयू की एंट्री
बता दें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट टीम में जीत के ठीक दो साल बाद जदयू की एंट्री हुई है। मंत्रिमंडल विस्तार में एनडीए के घटक दल जेडीयू के एक मात्र नेता आरसीपी सिंह को जगह मिली। कयास लगाए जा रहे थे कि जदयू कोटे से तीन-चार मंत्री पद मिल सकते है। लेकिन अब नीतीश कुमार को इस बार एक ही पद से संतोष करना पड़ा है।
ललन सिंह क्यों नहीं बने कैबिनेट मंत्री
बिहार की राजनीति में अब ये चर्चा शुरू हो गई है कि आखिर जदयू के दिग्गज नेता ललन सिंह को मोदी कैबिनेट में क्यों मौका नहीं मिला। बिहार की राजनीति की समझ रखनेवालों के लिए ये बेहद चौंकानेवाला है। कहा ये भी जाता है कि बिहार की राजनीति में ललन सिंह का कद बहुत बड़ा है। ललन सिंह बिहार में नीतीश कुमार के कद के बराबर माना जाता रहा है। ललन सिंह कैबिनेट में जगह चाहते थे। लेकिन जब यह निश्चित हो गया कि मोदी कैबिनेट में कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं मिलेगी, तो वह इस लिस्ट से बाहर हो गए।
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सांसद रहते नीतीश से बिगड़े रिश्ते
बिहार से मंत्रिमंडल विस्तार में जो नाम खूब चर्चा में थी, उनमें जदयू के राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह का भी नाम शामिल था। वे फिलहाल मुंगेर लोकसभा से सांसद है। ललन सिंह 15वीं लोकसभा के समय मुंगेर से सांसद रहते जदयू के विद्रोही बन गए थे। तब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से इनके रिश्ते बेहद खराब हो गए थे। इस समय पार्टी ने उनकी संसद सदस्यता समाप्त करने तक की बात कही, लेकिन 2013 आते-आते सब कुछ ठीक हो गया।
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आरसीपी सिंह और ललन सिंह के बीच संबंध
आरसीपी सिंह और ललन सिंह के बीच अभी पार्टी में वर्चस्व की लड़ाई चल रही है। आरसीपी सिंह जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष है और नीतीश के बेहद करीबी है। ललन सिंह भी नीतीश के करीबी है। लेकिन अभी राजनीतिक गलियारे में ये चर्चा है कि मंत्रीमंडल में जगह नहीं मिलने के पीछे कहीं न कहीं आरसीपी सिंह का हाथ हो सकता है। हालांकि आरसीपी सिंह ने का सीधे तौर कहना है कि केंद्र में भाजपा की पूर्ण बहुमत है बावजूद उसके प्रधानमंत्री मोदी के मंत्रीमंडल में तमाम सहयोगी पार्टियों को जगह दी गई है।ऐसे में सहयोगी दलों को हिस्सेदारी देना प्रधानमंत्री जी की उदारता है। जितने भी लोग उनके साथ जुड़े हैं, उन्हें अपने साथ रखा है।
बता दे विधानसभा चुनाव 2020 में जेडीयू महज 43 सीट जीतने में सफल हो पाई। वहीं भाजपा ने 73 सीटों को जीतकर जदयू के काफी समय से बढ़े सियासी भाव को एक झटके में कम कर दिया।