नई दिल्ली। मकर संक्रांति का त्योहार हर साल लोहड़ी के अगले दिन मनाया जाता है। इस साल यानी 2022 में भी 14 जनवरी को मनाया जा रहा है। इस दिन लोग तिल के लड्डू और खास खिचड़ी तैयार करते हैं। वहीं, देश के कई हिस्सों में इस त्योहार पर पतंग भी उड़ाई जाती है, हालांकि, इस बार कोरोना वायरस महामारी की वजह से हर साल की तरह इस त्योहार की धूम फीकी पड़ जाएगी।
मकर संक्रांति को शास्त्रों में स्नान, दान और ध्यान का त्योहार माना गया है। इस दिन भगवान सूर्य को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है और गुड़ तिल से बनी चीज़ें जैसे तिल के लड्डू, गजक, रेवड़ी को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। मकर संक्रांति पर तिल के लड्डू, दही चूड़ा के अलावा खिचड़ी भी खाई जाती है, लेकिन क्या आप जानते हैं ऐसा क्यों है? मकर संक्रांति पर खिचड़ी खाने की परंपरा के पीछे भगवान शिव के अवतार कहे जाने वाले बाबा गोरखनाथ की कथा है।
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खिलजी के आक्रमण के समय नाथ योगियों को खिलजी से संघर्ष के कारण खाना बनाने का वक्त नहीं मिल पाता था। जिस वजह से योगी अक्सर भूखे रह जाते थे और दिन-ब-दिन कमज़ोर हो रहे थे। इस समस्या का हल निकालने के लिए बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्ज़ी को मिलाकर एक पकवान बनाने की सलाह दी।
नाथ योगियों को यह व्यंजन काफी पसंद आया। बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन का नाम खिचड़ी रखा। गोरखपुर स्थित बाबा गोरखनाथ के मंदिर के पास मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी मेले की शुरुआत आरंभ होती है। कई दिनों तक चलने वाले इस मेले में बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है और इसे भी प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।
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