नई दिल्ली। हर माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को शिवरात्रि का पावन पर्व मनाया जाता है। सावन शिवरात्रि का हिंदू धर्म में विशेष महत्व होता है। इस दिन विधि- विधान से भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा- अर्चना की जाती है। सावन का पवित्र महीना चल रहा है. ये महीना भगवान शिव की आराधना करने का है। उन्हें ध्यान करने का है. वो सर्वस्व प्राणियों के तारणहार हैं। उनकी पूजा करने मात्र से जीवन की समस्त कठिनाइयों का समापन हो जाता है।
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सावन का माह भोलेनाथ को समर्पित होता है, जिस वजह से सावन में पड़ने वाली शिवरात्रि का विशेष महत्व होता है। सावन शिवरात्रि के दिन हर व्यक्ति को भोलेनाथ का जलाभिषेक करना चाहिए और शिव चालीसा का पाठ करना चाहिए। शिव चालीसा का पाठ करने से भगवान शंकर की विशेष कृपा प्राप्त होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो व्यक्ति नियम से रोजाना शिव चालीसा का पाठ करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
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सावन शिवरात्रि 2021 सावन के महीने में सबसे शुभ दिनों में से एक होती है. इस दिन, भक्त एक दिन का उपवास रखते हैं और समृद्ध और शांतिपूर्ण जीवन के लिए भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करते हैं। ये विशेष दिन हर महीने कृष्ण पक्ष के दौरान चतुर्दशी तिथि या श्रावण महीने के अंधेरे पखवाड़े के 14वें दिन पड़ता है। हिन्दू मान्यता के अनुसार, श्रावण मास में महाशिवरात्रि में अभिषेक करने का विशेष महत्व है।
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इस महीने, सावन शिवरात्रि या मासिक शिवरात्रि हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार 6 अगस्त, 2021, शुक्रवार को पड़ रही है। इस शुभ शिवरात्रि के बारे में तिथि, समय और अन्य महत्वपूर्ण विवरण देखें-
सावन शिवरात्रि 2021 की तिथि और समय
दिनांक : शुक्रवार, 6 अगस्त, 2021
काल पूजा का समय – 12:06 मध्य रात्रि से 12:48 मध्य रात्रि, 07 अगस्त
पारण समय – 05:46 प्रात: से 03:47 दोपहर, 07 अगस्त, 2021
सावन शिवरात्रि का महत्व :हिंदू मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करने वाले भक्तों को सुख, शांति और समृद्ध जीवन प्रदान किया जाता है। साथ ही भूत और वर्तमान के पापों से भी मुक्ति मिलती है। इस दिन उपवास करने से व्यक्ति की आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
महा मृत्युंजय मंत्र
ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृ त्योर्मुक्षीय मामृतात्
सावन शिवरात्रि 2021 की पूजा विधि
सावन शिवरात्रि पूजा आधी रात को की जाती है, जिसे निशिता काल के नाम से जाना जाता है। इसलिए पूजा शुरू करने से पहले स्नान कर साफ कपड़े पहन लें।
– शिव मंदिर जाएं और शिव लिंग पर गंगा जल, दूध, घी, शहद, दही, सिंदूर, चीनी, गुलाब जल आदि पवित्र जल चढ़ाकर अभिषेक करें. अभिषेक करते समय ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप करते रहें।
– चंदन से तिलक करें और धतूरा, बेल पत्र और अगरबत्ती चढ़ाएं।
– महामृत्युंजय मंत्र, शिव चालीसा और ॐ नमः शिवाय का 108 बार जाप करें।
– भगवान शिव और देवी गौरी की आरती कर पूजा का समापन करें।
सावन शिवरात्रि की कथा
बहुत समय पहले वाराणसी के एक जंगल में गुरुद्रुह नाम का भील रहता था। वह शिकार के जरिए अपने परिवार का पेट भरता था। शिवरात्रि के दिन उसे कोई शिकार नहीं मिला जिसकी वजह से उसे चिंता होने लगी। जंगल में भटकते-भटकते वह झील के पास आ गया। झील के पास बिल्ववृक्ष था, वह पानी का पात्र भरकर बिल्ववृक्ष पर चढ़ गया और शिकार का इंतजार करने लगा। तब एक हिरनी वहां आई, उसे मारने के लिए वह अपना धनुष और तीर चढ़ाने लगा तभी बिल्ववृक्ष का पत्ता और जल पेड़ के नीचे स्थापित शिवलिंग पर गिर गया। ऐसे में शिवरात्रि के प्रथम प्रहर पर अनजाने में उसने पूजा कर ली।
हिरनी ने देख कर उससे पूछा की वह क्या करना चाहता है। तब गुरुद्रुह ने कहा कि वह उसे मारना चाहता है। फिर हिरनी ने कहा कि वह अपने बच्चों को अपनी बहन के पास छोड़ कर आ जाएगी। हिरनी की बात मानकर उसने हिरनी को छोड़ दिया। इसके बाद हिरनी की बहन वहां आई। फिर से गुरुद्रुह ने अपना धनुष और तीर चढ़ाया। तब बिल्वपत्र और जल शिवलिंग पर जा गिरे। ऐसे दूसरे प्रहर की पूजा हो गई। हिरनी की बहन ने कहा की वह अपने बच्चों को सुरक्षित जगह पर रख कर वापस आएगी। तब गुरुद्रुह ने उसे भी जाने दिया।
कुछ देर बाद वहां एक हिरन अपनी हिरनी की तलाश में आया। इस बार भी वैसा ही हुआ और तीसरे प्रहर में शिवलिंग की पूजा हो गई। हिरन ने उससे वापस आने का वादा किया जिसके बाद गुरुद्रुह ने उसे भी जाने दिया। अपना वादा निभाने के लिए दोनों हिरनी और हिरन गुरुद्रुह के पास आ गए। जब गुरुद्रुह ने सबको देखा तो उसे खुशी हुई। उसने अपना धनुष-बाण निकाला तभी बिल्वपत्र और जल शिवलिंग पर गिर गया। ऐसे चौथे प्रहर की पूजा भी समाप्त हुई।
शिव चालीसा दोहा
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान। कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
चौपाई
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे॥
मैना मातु की हवे दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद माहि महिमा तुम गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला। जरत सुरासुर भए विहाला॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनन्त अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै। भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। येहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट ते मोहि आन उबारो॥
मात-पिता भ्राता सब होई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु मम संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदा हीं। जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। शारद नारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमः शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पर होत है शम्भु सहाई॥
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र होन कर इच्छा जोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा। ताके तन नहीं रहै कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्त धाम शिवपुर में पावे॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
शिव आरती
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॐ जय शिव
एकानन चतुरानन पंचानन राजे
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे. ॐ जय शिव
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे,
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे. ॐ जय शिव
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॐ जय शिव
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे. ॐ जय शिव
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॐ जय शिव
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका. ॐ जय शिव
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी. ॐ जय शिव
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे. ॐ जय शिव
खुद को रखना चाहते है फिट तो दिन की शुरुआत करें इन आदतों के साथ
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो व्यक्ति नियम से रोजाना शिव चालीसा का पाठ करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
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