नई दिल्ली। दुनिया में कोराना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। पिछले 10-11 महीनों में कोरोना वायरस की प्रकृति, जांच, इससे बचाव और इलाज के तरीकों पर हजारों शोध हो चुके हैं। हालांकि अब तक भी वैज्ञानिक कोरोना वायरस को पूरी तरह नहीं समझ पाए हैं। कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों के पीछे पाबंदियों में ढील, दिशानिर्देशों की अनदेखी, लोगों की लापरवाही आदि कारण तो हैं ही, लेकिन एक कारण कोरोना के ‘सुपर स्प्रेडर’ भी हैं।
जो तेजी से कोरोना फैलाते हैं उन्हें ‘सुपर स्प्रेडर’कहते हैं । कई बार ऐसे लोगों में संक्रमण के बावजूद लक्षण नहीं दिखते हैं, लेकिन ये लोगों के बीच मौजूद रहते हुए खांसने, छींकने या बात करने के दौरान अपने ड्रॉप्लेट्स के जरिए कई स्वस्थ लोगों को संक्रमित कर देते हैं। अमेरिका की सेंट्रल फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने कोरोना के ‘सुपर स्प्रेडर’ की पहचान के लिए हाल ही में एक शोध किया है। शोधकर्ताओं ने इस ताजा शोध में यह बताया है कि कैसे लोग तेजी से कोरोना संक्रमण फैला सकते हैं।
इस ताजा शोध के मुताबिक, संक्रमित लोगों के दांतों की संख्या, मुंह में लार की मात्रा और अलग-अलग तरह से छींकने का तरीके पर निर्भर करता है कि उनके मुंह से निकले ड्रॉप्लेट्स हवा में कितनी दूर तक जाएंगे। इसी पर निर्भर करता है कि उन ड्रॉपलेट्स से अन्य लोगों को संक्रमण होने का कितना खतरा हो सकता है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि जिनकी नाक साफ नहीं होती है और पूरे दांत होते हैं, उनके मुंह से ज्यादा ड्रॉप्लेट्स निकलते हैं और ऐसे में संक्रमण फैलने का खतरा ज्यादा होता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि छींक की रफ्तार को दांत बढ़ाते हैं। ऐसे में पूरे दांत वाले लोगों के मुंह से निकले ड्रॉप्लेट्स भी ज्यादा दूर तक जाते हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक, ऐसे लोग 60 % तक ज्यादा खतरनाक ड्रॉप्लेट्स पैदा करते हैं।
शोधकर्ताओं के मुताबिक, जब संक्रमित मरीज की नाक साफ होती है तो नाक या मुंह से निकलने वाले ड्रॉप्लेट्स की दूरी कम रह जाती है और ये ज्यादा दूर तक नहीं जा पाते। वहीं, जिस इंसान की नाक के आखिरी हिस्से में गंदगी या जाम की समस्या होती है, तो ऐसी स्थिति में बनने वाले दबाव के कारण ड्रॉप्लेट्स तेज रफ्तार से बाहर निकलते हैं।
वैज्ञानिकों ने मुंह की लार को 3 भाग किया है जो, पतली, मध्यम और गाढ़ी में है। लार पतली होने पर ड्रॉप्लेट्स छोटे होते हैं और हवा में लंबे समय तक रहते हैं। मध्यम या गाढ़ी लार वाले ड्रॉप्लेट्स ज्यादा समय तक हवा में नहीं रह पाते और जल्द ही जमीन पर गिर जाते हैं। ऐसे में संक्रमण का खतरा कम रहता है।
कोरोना फैलने का सबसे ज्यादा खतरा ड्रॉप्लेट्स के जरिए रहता है, इसलिए विशेषज्ञों की सलाह है कि मास्क का इस्तेमाल जरूर करें। कोरोना संक्रमित व्यक्ति हों या फिर स्वस्थ व्यक्ति, दोनों के लिए मास्क उतना ही जरूरी है। अगर किसी में कोरोना के लक्षण हों और वह मास्क पहने तो उसके मुंह या नाक से ड्रॉप्लेट्स बाहर नहीं फैलेंगे। स्वस्थ व्यक्ति मास्क पहनेंगे तो इन ड्रॉप्लेट्स से उनका बचाव होता है।
विशेषज्ञों की सलाह है कि बहुत जरूरी हो तभी घर से बाहर निकलें। कहीं भी बाहर निकलने से पहले मास्क जरूर पहनें। इसके साथ हाथों को साबुन-पानी से साफ करते रहें या सैनिटाइजर का इस्तेमाल करें। सोशल डिस्टेंसिंग समेत कोरोना के सभी दिशानिर्देशों का पालन करें। जब तक वैक्सीन नहीं आ जाती है, तब तक कोरोना से बचाव ही इसका उपाय है।