नई दिल्ली। हिंदी बाजार में अब तक 80 करोड़ रुपये से अधिक की कमाई कर चुकी फिल्म ‘पुष्पा पार्ट वन’ के बाद फिल्म निर्माता मनीष शाह (Manish Shah) इसके हीरो अल्लू अर्जुन की एक और फिल्म ‘अला वैकुंठपुरमुलू’ भी 26 जनवरी को हिंदी रिलीज करने जा रहे हैं। इसके साथ ही हिंदी में फिल्में रिलीज करने को लेकर एक बड़ा ऐलान भी किया है।
बॉलीवुड एक्ट्रेस kareena Kapoor khan ने कोविड जागरुकता के लिए उठाया ये कदम
मीडिया से बातचीत में मनीष कहते हैं,- कि हिंदी सिनेमा में गालियों और चुंबन की भरमार ने इससे इसके पारिवारिक दर्शक छीन लिए हैं। दक्षिण भारत में अब भी फिल्में पूरे परिवार के साथ ही देखी जाती हैं और इन फिल्मो को इसीलिए हिंदी भाषी दर्शकों ने हाथों हाथ लिया। मनीष का ये भी कहना है कि हिंदी के सितारों को दक्षिण में अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए और ऐसा हुआ तो हिंदी सिनेमा का भी देश के दक्षिण राज्यों में बेहतर विस्तार हो सकता है।
वह नए साल में कम से कम 10 बड़े बजट की दक्षिण भारतीय फिल्में इनकी मूल भाषा की रिलीज के साथ ही हिंदी में डब करके सीधे सिनेमाघरों में रिलीज करने की तैयारी कर रहे हैं।आगे मनीष कहते हैं, -जब भी हम अपने मां बाप या बीवी बच्चों के साथ कोई फिल्म या सीरीज देखते हैं और उसमें गाली या चुंबन का दृश्य आता है तो हमारी पहली हरकत चैनल को बदलने की होती है। ओटीटी का भी यही हाल है।
ऐसे में पारिवारिक मनोरंजन के लिए हिंदी भाषी दर्शकों ने दक्षिण भारतीय फिल्मों को अपनाया। इन फिल्मों के हिंदी संस्करणों की सैटेलाइट चैनलों पर लोकप्रियता ने ये साबित किया कि सिनेमा अब भी पारिवारिक मनोरंजन का माध्यम है और इसकी सफलता के लिए परिवार के साथ ही लोगों का फिल्म देखना जरूरी है। तो किसी दक्षिण भारतीय फिल्म को हिंदी मे रिलीज करने की प्रक्रिया में क्या क्या चरण शामिल रहते हैं?
ये पूछने पर मनीष बताते हैं, -जिस फिल्म को भी मैं हिंदी में रिलीज करने के अधिकार खरीदता हूं। पहले उसे मैं खुद देखता हूं। उसके बाद मैं इसकी हिंदी की स्क्रिप्ट तैयार कराता हूं। मेरे पास अलग अलग तरह की फिल्मों को डब करने के अलग अलग निर्देशकीय टीम है जो इन फिल्मों के विषय के हिसाब से इन्हें डब करती है। फिल्म डब होने का बाद भी मैं इन्हें फिर से देखता हूं और इनके कॉमेडी या इमोशनल दृश्यों को कुछ ऐसे लेखकों से फिर से लिखवाता हूं जो इनके विशेषज्ञ हैं। फिल्म के डबिंग अधिकार लेने से इसकी अंतिम कॉपी बनने तक मैं पूरी प्रक्रिया को अपनी देखरेख में ही पूरी कराता हूं।
घर बैठे हो रहे है बोर, तो आज ही OTT Platfrom पर देखिए ये Web Series
दक्षिण भारतीय फिल्मों को हिंदीभाषी प्रदेशों में लगातार मिल रही कामयाबी से मुंबई के सितारों के लिए चुनौती कितनी बढ़ी है? इसके जवाब में मनीष कहते हैं,- दक्षिण भारतीय सितारों ने टेलीविजन के सैटेलाइट चैनलों के सहारे अपनी लोकप्रियता देश के हिंदीभाषी राज्यों में बढ़ा ली है। हिंदी भाषी राज्यों के दर्शकों ने दक्षिण भारतीय फिल्मो के इन सितारों को अपना लिया है। लेकिन, हिंदी फिल्मों के सितारों ने कभी ऐसी कोई कोशिश दक्षिण में की ही नहीं। ‘बाहुबली’ जैसी फिल्म हिंदी भाषी राज्यों में 500 करोड़ रुपये कमा ले जाती है और उसके बाद से लगातार दक्षिण भारतीय फिल्में हिंदी राज्यों में अच्छा कारोबार कर रही हैं।
ये फिल्में अपने राज्यों में भी खूब हिट होती है। सिर्फ आंध्र प्रदेश, तेलंगाना में किसी बड़े सितारे की तेलुगु फिल्म का सौ करोड़ रुपये कमा लेना आम बात है। लेकिन, किसी हिंदी सितारे की फिल्म दक्षिण की सारे वितरण क्षेत्रों को मिलाकर भी 25 करोड़ रुपये कमा ले, तो ये चमत्कार सरीखा होगा।तो भविष्य क्या है, क्या अब दक्षिण की अखिल भारतीय फिल्मों से मुकाबले करने को हिंदी सिनेमा को भी कोई नई रणनीति नहीं बनानी चाहिए? बिल्कुल, उसी की जरूरत है।
मनीष शाह बताते हैं, – हिंदी सिनेमा के बड़े से बड़े सितारों की दक्षिण में कभी पूजा नहीं हुई। और सिर्फ आज के सितारों की ही नहीं पहले के सितारों की भी मैं बात यहां कर रहा हूं। दक्षिण में फिल्म सितारे भगवान की तरह पूजे जाते हैं। वहां किसी बड़े सितारे की फिल्म का पहला शो रात 2 बजे शुरू होता है। यहां किसी हिंदी फिल्म का शो आप सुबह 9 बजे कर लो, तो दर्शक जुटाने मुश्किल हो जाते हैं। सितारों का असल स्टारडम दक्षिण भारत में ही दिखता है। सितारों के मंदिर वहां बनते हैं। अमिताभ बच्चन का मंदिर तो उनके अपने सबसे तगड़े स्टारडम के दौर में भी नहीं बना।
सोशल मीडिया अपडेट्स के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।