नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को छात्रहित में अहम फैसला देते हुए केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) की अंक सुधार नीति (CBSE Marks Improvement Policy) के प्रावधान-28 को रद्द कर दिया। सीबीएसई मार्क्स इंप्रूवमेंट पॉलिसी (CBSE Marks Improvement Policy) के प्रावधान में कहा गया था कि, अंक सुधार परीक्षा में प्राप्त अंकों को पिछले शैक्षणिक वर्ष के लिए कक्षा 12वीं के छात्रों के मूल्यांकन के अंतिम अंक के रूप में माना जाएगा।
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“दो अंकों में से बेहतर” के बीच चयन करने का विकल्प
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ कर रही थी। पीठ ने कहा कि, छात्र अपने मूल अंकों (CBSE Marks Improvement Policy) को बनाए रखने की मांग कर रहे हैं, क्योंकि सुधार परीक्षा के अंकों को बनाए रखने से उच्च शिक्षा में प्रवेश लेने में समस्या हो सकती है। पीठ ने आगे कहा कि छात्रों के पास परीक्षाओं के दौरान प्राप्त “दो अंकों में से बेहतर” के बीच चयन करने का विकल्प होना चाहिए।
सीबीएसई के बदलाव पर्याप्त नहीं
सुनवाई के दौरान कोर्ट में सीबीएसई के वकील ने कहा कि, बोर्ड रिजल्ट पॉलिसी में आंशिक संशोधन किया है, जिसने सुधार परीक्षा में ‘विफल’ होने वाले छात्रों को अपना ‘पास’ परिणाम बनाए रखने की अनुमति दी है, जो उन्हें मानक फॉर्मूले के अनुसार मिला था। हालांकि, पीठ ने इस पर सवाल उठाया और सीबीएसई से नीति में इस संशोधन पर भी पुनर्विचार करने को कहा।
सुधार परीक्षा के अंकों को अंतिम माना जाए
सीबीएसई के वकील ने आगे यह कहते हुए तर्क दिया कि, चूंकि ऐसे मामलों में परीक्षा का अंतिम चरण सुधार परीक्षा है, उसी के लिए अंकों (CBSE Marks Improvement Policy) को अंतिम ग्रेड माना जाना चाहिए। यह देखते हुए कि बोर्ड ने पहले छात्रों को प्राप्त दो अंकों में से बेहतर चुनने की अनुमति दी थी, पीठ ने इस संशोधन के औचित्य के लिए कहा और खंड को क्यों नहीं हटाया जा सका, जो प्रदान नहीं किया गया था।
इंप्रूवमेंट पॉलिसी पर पुनर्विचार को कहा था
सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) से कहा था कि वह दिसंबर, 2021 में मानक फॉर्मूले के अनुसार हासिल किए गए अंकों से 12वीं कक्षा की सुधार परीक्षा में प्राप्त अंकों के इंप्रूवमेंट (CBSE Marks Improvement Policy) की अपनी नीति पर पुनर्विचार करे। लेकिन बोर्ड ने सिर्फ आंशिक बदलाव किए थे, जो कोर्ट ने पर्याप्त नहीं माने और सीबीएसई की इंप्रूवमेंट मार्क्स पॉलिसी खारिज कर दी। साथ ही छात्रों को च्वॉइस विकल्प देने के लिए निर्देशित किया।