नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने महाराष्ट्र विधानसभा (Maharastra Legislative Assembly) से 12 बीजेपी विधायकों (MLA suspension) के एक साल के निलंबन को असंवैधानिक बताया है। इसके साथ ही इसे रद्द कर दिया है। बता दें कि, पिछले साल 6 जुलाई को विधानसभा में स्पीकर के साथ अपमानजनक और दुर्व्यवहार करने के आरोप में विधायकों को एक साल के लिए निलंबित कर दिया गया था।
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विधायकों को एक साल तक निलंबित करना निष्कासन से भी बदतर
Supreme Court ने अपने फैसले में कहा कि एक सत्र से ज्यादा का निलंबन (MLA suspension) सदन के अधिकार में नहीं है और ऐसा करना असंवैधानिक है। जस्टिस एएम खानविलकर (Justice AM Khanwilkar) ने कहा कि विधायकों को एक साल तक निलंबित करना निष्कासन से भी बदतर है और ये पूरे निर्वाचन क्षेत्र को सजा देने जैसा होगा।
निर्वाचन क्षेत्रों का सदन में प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता
उन्होंने कहा, ‘कोई भी इन निर्वाचन क्षेत्रों का सदन में प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता। क्योंकि क्षेत्र के विधायक सदन में मौजूद नहीं होंगे। यह सदस्य को नहीं बल्कि पूरे निर्वाचन क्षेत्र को सजा देने के बराबर है।’ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो एक साल के निलंबन की सजा की न्यायिक समीक्षा करेगा। हालांकि महाराष्ट्र सरकार ने जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा है। जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस दिनेश माहेश्वरी की बेंच मामले की सुनवाई कर रही है।
अदालत एक विधानसभा द्वारा दिए गए दंड की मात्रा की जांच नहीं कर सकती
कोर्ट (Supreme Court) ने यह भी बताया कि संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार, एक निर्वाचन क्षेत्र 6 महीने से अधिक की अवधि के लिए बिना प्रतिनिधित्व के नहीं रह सकता है। कोर्ट ने महाराष्ट्र की इस दलील को ठुकरा दिया कि अदालत एक विधानसभा द्वारा दिए गए दंड की मात्रा की जांच नहीं कर सकती है।
सदन द्वारा प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन
याचिकाकर्ता बीजेपी विधायकों ने कहा कि सदन द्वारा प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन किया गया। निर्वाचन क्षेत्र के अधिकारों की रक्षा करने की जरूरत है। इस तरह से निष्कासन (MLA suspension) सरकार को महत्वपूर्ण मुद्दों में बहुमत वोट हासिल करने के लिए सदन में ताकत में हेरफेर करने की अनुमति दे सकता है।
14 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा सचिव को नोटिस जारी कर जवाब मांगा
याचिकाकर्ता विधायकों की ओर से महेश जेठमलानी, मुकुल रोहतगी, नीरज किशन कौल और सिद्धार्थ भटनागर पेश हुए। इससे पहले 14 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने विधानसभा सचिव को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा था कि यह कहने की जरूरत नहीं है कि याचिका का लंबित रहना याचिकाकर्ता के कार्यकाल में कटौती के संबंध में सदन से आग्रह करने के रास्ते में नहीं आएगा। यह एक ऐसा मामला है जिस पर सदन द्वारा विचार किया जा सकता है।