नई दिल्ली। भारत में शिक्षा का स्तर बड़ता जा रहा है, हर व्यक्ति समझदार होता जा रहा है, महिलाएं अपनी सुरक्षा को लेकर जागरुक है। पर कहीं ना कहीं आज भी महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार हो रहीं है। देखा जाए तो कुछ राज्य ऐसे भी है जहां पर 30 फीसदी से ज्यादा महिलाएं इस समस्या से गुजर रहीं है। इस समस्या का समाधान जरुरी है, जरुरी है कि लोग इस बात को गम्भीरता से ले और अपने साथ या अपने आस-पास हो रही इस हिंसा के प्रति आवाज उठाए।
घरेलू हिंसा का शिकार महिलाएं
जब साल की शुरुवात में ही कोरोना माहामारी ने देश में हलचल मचा दी थी। तब एक तरफ तो कोरोना के केस बड़ रहे थे और दूसरी तरफ कोरोनावायरस के प्रसार ने घरेलू हिंसा की घटनाओं में खासी वृद्धि की है। पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ और कार्यकारी निदेशक पूनम मुतरेजा ने कहा कि भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को घरेलू हिंसा को एक सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता के रूप में देखना चाहिए और तत्काल आधार पर इसका जवाब देना चाहिए। हमें केवल सबूतों को देखकर प्रतिक्रिया देने के अलावा अब इस संबंध में कार्य करने की जरूरत है।
रिपोर्ट के अनुसार देश के 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में किए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के मुताबिक, पांच राज्यों की 30 फीसदी से अधिक महिलाएं अपने पति द्वारा शारीरिक और यौन हिंसा की शिकार हुई हैं। एनएफएचएस के मुताबिक, महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा के मामलों में सबसे बुरा हाल कर्नाटक, असम, मिजोरम, तेलंगाना और बिहार में है।
इस सर्वेक्षण में देश भर के 6.1 लाख घरों को शामिल किया गया। इसमें साक्षात्कार के जरिए आबादी, स्वास्थ्य, परिवार नियोजन और पोषण संबंधी मानकों के संबंध में सूचनाएं इकठ्ठा की गईं। एनएफएचएस-5 सर्वेक्षण के मुताबिक, कर्नाटक में 18 से 49 आयु वर्ग की करीब 44.4 फीसदी महिलाओं को अपने पति द्वारा घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ा है। जबकि 2015-2016 के सर्वेक्षण के दौरान राज्य में ऐसी महिलाओं की संख्या करीब 20.6 फीसदी थी।
इसके अलावा नौ राज्यों और केंद्र शासित में 18 से 29 वर्ष आयु की लड़कियों और महिलाओं के उत्पीड़न के प्रतिशत में वृद्धि हुई है। इनका कहना था कि उन्हें 18 साल की उम्र तक यौन हिंसा का सामना करना पड़ा। इनमें असम, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गोवा, मेघालय, सिक्किम, पश्चिम बंगाल, जम्मू और कश्मीर और लद्दाख शामिल हैं। इस बीच, सामाजिक कार्यकर्ताओं और एनजीओ ने घरेलू हिंसा के मामलों में वृद्धि के लिए कम साक्षरता दर और शराब का सेवन समेत अन्य कारणों को जिम्मेदार ठहराया है।