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Thursday, May 16, 2024

Review: कैसी है भूम‍ि की पहली हॉरर फ‍िल्‍म दुर्गामती, देखिए रिव्यू

रेटिंगः 3/5 स्टार
निर्माताः विक्रम मल्होत्रा, अक्षय कुमार, भूषण कुमार, किशन कुमार
निर्देशकः अशोक
कलाकारः भूमि पेडनेकर, अरशद वारसी, माही गिल, करण कपाड़िया, जीशू सेन गुप्ता, अमित बहल, अनंत महादेवन, धनराज, सोण्ब अली, चंदन विकी रॉय, प्रभाकर रघुनंदन, ब्रजभूषण शुक्ला व अन्य.
अवधिः दो घंटे 36 मिनट
ओटीटी प्लेटफार्मः अमेजन प्राइम वीडियो

नई दिल्ली। दक्षिण भारत के चर्चित फिल्मकार जी. अशोक अपनी 2018 की सफलतम हॉरर व रोमांचक तमिल व तेलगू फिल्म भागमती का हिंदी रीमेक दुर्गामती (Durgamati) लेकर आए हैं. राजनीतिक भ्रष्टाचार के इर्द गिर्द बनी गयी हॉरर रोमांचक फिल्म में किसी राज्य के आईएएस अफसर को किसी केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई की चाल में फंसाकर बदनाम करने, बेइज्जत करने और फिर उसे एक बड़ी साजिश का हिस्सा बनाने की कोशिश करने की कहानी है फिल्म दुर्गामती. यह बात मूल फिल्म भागमती में क्लायमैक्स में दर्शकों को पता चलती है, जबकि फिल्म दुर्गामती शुरू में ही सारा खेल दर्शकों के सामने रख देती है.

क्या है कहानीः कहानी एक राज्य से शुरू होती है, जहां पर 12 प्राचीन मंदिरों की मूर्तियां चोरी हो चुकी हैं. जहां राज्य के इमानदार माने जाने वाले जल संसाधन मंत्री ईश्वर प्रसाद (अरशद वारसी) एक सभा में लोगों से वादा करते हैं कि यदि मंदिर की मूर्तियां चुराने वालों को 15 दिनों में नहीं पकड़ा गया, तो वह अपने मंत्री पद से इस्तीफा देने के अलावा राजनीति से सन्यास लेकर अजय को अपना उत्तराधिकारी बना देंगे, जो कि लोगों की सेवा करना ही परमधर्म समझता है. ईश्वर प्रसाद को उनकी ईमानदारी की वजह से जनता भगवान मानती है. पर इससे मुख्यमंत्री व पार्टी के अन्य नेता डरे हुए हैं. राज्य के मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री सीबीआई की संयुक्त आयुक्त सताक्षी गांगुली (माही गिल) और एसीपी अभय सिंह (जीशु सेनगुप्ता) को ईश्वर प्रसाद के भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने के लिए कहते हैं. योजना के तहत सताक्षी गांगुली और एसीपी अभय सिंह जेल में बंद ईश्वर प्रसाद की पूर्व निजी सचिव व आईएएस अफसर चंचल चैहान (भूमि पेडनेकर) को पूछताछ के लिए जेल से निकालकर जंगल में बनी एक ‘दुर्गामती’नामक भुतिया महल में ले जाती हैं. चंचल अपने मंगेतर व अभय सिंह के छोटे भाई शक्ति (करण कपाड़िया) की हत्या के जुर्म में जेल में बंद है. लोगों की राय में महल में रानी दुर्गामती की आत्मा वास करती है. लेकिन सीबीआई अफसर शताक्षी, चंचल को वहीं पर हर किसी की नजर से बचकर रखते हुए ईश्वर प्रसाद के कारनामे के बारे में पूछताछ करती है. जहां कई चीजे बलती हैं. चंचल, दुर्गामती बनकर कई नाटक करती है. पुलिस व सीबीआई अफसर को अहसास हो जाता है कि रात होते ही चंचल पर रानी दुर्गामती की आत्मा आ जाती है औैर वह पूरी तरह से बदल जाती है. वही बताती है कि रानी दुर्गामती कौन थी? अंततः मनोचिकित्सक (अनंत महादेवन) की सलाह पर चंचल को पागलखाना में भर्ती कर दिया जाता है. जहां ईश्वर प्रसाद उससे मिलने आते हैं. तो क्या सच में वहां आत्मा का वास है या चंचल की चाल? यही क्लाइमैक्स है.

निर्देशन: दुर्गामती तेलुगु फिल्म की हिंदी रीमेक है, लेकिन अभी भी इसमें साउथ की छाप है जो हिंदी दर्शकों को निराश कर सकती है। निर्देशक जी.अशोक ने फिल्म को पूरी तरह से सीन दर सीन एक भाषा से दूसरे भाषा में उतार दिया है। लेकिन यह जानना अति महत्वपूर्ण है कि हिंदी फिल्म के दर्शकों का स्वाद काफी अलग है। रानी दुर्गामती बनी भूमि पेडनेकर के डायलॉग के पीछे दिया गया बैकग्राउंड स्कोर और echo उबा देने वाला है। फिल्म की कहानी दिलचस्प है, लेकिन संवाद और निर्देशन बिल्कुल लचर। ज्यादातर दृश्यों में फिल्म के संवाद उपदेश लगते हैं। जाहिर है हिंदी दर्शकों को इससे बांधना मुश्किल है। नारीवाद या भ्रष्टाचार पर कहानी कहनी चाहिए, लेकिन कहने का तरीका प्रभावी होना चाहिए।

अभिनय: भूमि पेडनेकर भूमि पेडनेकर एक सशक्त अभिनेत्री हैं, जो हर फिल्म के साथ दर्शकों की तारीफ बटोरती हैं। लेकिन फिर यहां क्या कमी रही? शायद सही निर्देशन की। कुछ दृश्यों में उन्होंने इंप्रेस किया है, लेकिन रानी दुर्गामती बनकर वह बेदम नजर आईं। वहीं माही गिल के हिस्से दो- चार डायलॉग्स के अलावा कुछ खास आया ही नहीं है.. वह भी बंगाली- हिंदी मिलाकर दिया गया संवाद कुछ अजीब सा ही बन पड़ा है। जीशु सेनगुप्ता जब जब स्क्रीन पर आए, प्रभावी लगे। करण कपाड़िया का किरदार छोटा और फ्लैट सा था।

सिनेमेटोग्राफी और एडिटिंग: कुलदीप ममालिया की सिनेमेटोग्राफी कहानी को प्रभावी बनाती है। खासकर दुर्गामती महल के माध्यम से दर्शकों को डराने में कुलदीप सफल रहे हैं। फिल्म का आर्ट डाइरेक्शन तारीफ के काबिल है। उन्निकृष्णण एडिटिंग में अपने हाथ और कस सकते थे। ढ़ाई घंटे की यह फिल्म काफी खिंची हुई लगती है। राजनीति और भ्रष्टाचार से जुड़े उपदेश वाले दृश्य फिल्म को बहुत लंबा करते हैं और दर्शकों को बोर भी।

संगीत: फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर औसत है, जिसे दिया है Jakes Bejoy ने। कहना गलत नहीं होगा कि एक हॉरर फिल्म के लिए यह महत्वपूर्ण पक्ष होता है। वहीं, फिल्म का संगीत कंपोज किया है तनिष्क बागची, नमन अधिकारी, अभिनव शर्मा और मालिनी अवस्थी ने। फिल्म में दो ही गाने हैं जो बैकग्राउंड में चलते हैं और असर छोड़ते हैं।

देंखे या ना देंखे: फिल्म की रूपरेखा जैसी है, यह एक जबरदस्त हॉरर फिल्म की श्रेणी जा सकती थी। लेकिन कमजोर निर्देशन और अभिनय की वजह से फिल्म औसत बनकर रह जाती है। भूमि पेडनेकर एक दमदार अभिनेत्री हैं, कुछ दृश्यों में वो खूब जंची हैं, लेकिन जहां लंबे संवाद और दुर्गामती की खास अदायगी दिखाने की बारी आई तो वो असरदार नहीं लगीं। खासकर फिल्म के क्लाईमैक्स को प्रभावी बनाने में निर्देशक मात खा जाते हैं। यदि आप हॉरर- संस्पेंस फिल्में देखना पसंद करते हैं, तो एक बार दुर्गामती देखा जा सकती है। फिल्म की कहानी कई दिलचस्प मोड़ लेती है, लेकिन अंत में जाकर बिल्कुल बिखर जाती है। ढ़ाई घंटे की यह फिल्म हिस्सों में इंटरटेन करती है।

 

Priya Tomar
Priya Tomar
I am Priya Tomar working as Sub Editor. I have more than 2 years of experience in Content Writing, Reporting, Editing and Photography .

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