नई दिल्ली। फिल्म वॉर के ‘घुंघरु’ गाने से चर्चाओं का हिस्सा बनने वाली शिल्पा शव से जब उनके जिंदगी के बारें नें पूछा गया। तब उन्होंने खुद से जुंड़े कई सारे किस्से और कहानियों के बारें में बाताया और कहा कि मैं खुद को कभी किसी पिजरें में कैद करके रखना नहीं चाहती हूं और ना ही काफी असफलताओं से डरती हूं। इसी के साथ शिल्पा राव में कई सारी बात और बताई जो काफी दिलचस्प है।
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वहीं हाल ही में शिल्पा इंडियन म्यूजिक प्रो लीग में ‘मुंबई वॉरियर्स’ टीम की गायक कैलाश खेर के साथ अगुआई कर रहीं है। इस दौरान जब शिल्पा से बात हुई तो उनका कहना था कि-” मशहूर म्यूजिक बैंड डाफ्ट पंक के बिखर जाने से मैं उदास नहीं हूं क्योंकि हो इसमें भी संगीत का कुछ अच्छा होना छुपा हो। बिखरने के बाद हो सकता है ये अलग अलग क्षेत्रों में जाकर और कुछ नया करने में कामयाब रहें। शिल्पा ने कहा कि संगीत उनके लिए एक ऐसी तपस्या है जिसकी साधना कभी पूरी नहीं होती और वह खुद को खुशकिस्मत मानती हैं कि बोलना सीखने से पहले उन्होंने राग में रोना सीखा।”
आगे शिल्पा राव ने कहा है कि- “संगीत कहीं का भी हो, मुझे अच्छा लगता है। मैं ये नहीं सोचती कि मैंने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत सीखा है तो वेस्टर्न संगीत मेरे लिए अछूत है। मैं सब सुनती हूं। सब गाती हूं। संगीत ने पूरी दुनिया को जोड़ने में काफी अहम भूमिका निभाई है और ये संगीत के सुर ही है जो हर जगह एक से होते हैं। संगीत की दूसरी खूबी ये भी है कि ये वंचितों को एक आवाज देता है। दुनिया के तमाम इलाकों में संगीत ने ही शोषण से मुक्ति को आवाज दी है।”
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शिल्पा राव हमेशा यही कहती है कि उनके करियर और संगीत का सबसे ज्यादा अगर श्रेय संगीतकार मिथुन को ही जाता है। आगें शिल्पा कहती है कि मैंने लॉकडाउन को जिया है, मैंने काफी अच्छा वक्त अपने परिवार के साथ बिताया है। शिल्पा बताती हैं, ‘मैं कभी गानों के पीछे नहीं भागी। अच्छे गाने खुद मुझे तलाशकर मुझ तक पहुंच जाते हैं। इसकी वजह ये भी है कि मैंने खुद को किसी तरह के पिंजरे में कैद नहीं किया है। मैं सबसे घुलती मिलती हूं। सब मुझ तक आसानी से पहुंच सकते हैं। बस दिन भर का काम खत्म करने के बाद मैं थोड़ा समय अपने लिए निकालती हूं और आप मानेंगे नहीं लेकिन रियाज का मेरा सबसे पसंदीदा समय देर रात का है। जब न कोई घंटी बजती है और न ही कोई डिस्टर्ब करता है।’