नई दिल्ली| राजस्थान के उपचुनाव (Rajasthan by-elections) के नतीजों ने एक बार फिर सूबे की सियासत में सीएम अशोक गहलोत (CM Ashok Gehlot) का झंडा बुलंद कर दिया है| सीएम अशोक गहलोत ने एक बार फिर से साबित कर दिया कि उन्हे राजनीति का माहिर खिलाड़ी यू ही नहीं कहा जाता है| वल्लभनगर और धरियावद विधानसभा सीटें जीतकर राजस्थान कांग्रेस (Rajsthan Congress) में चल रही वर्चस्व की जंग में गहलोत एक बार फिर पायलट से आगे निकल गए हैं| उपचुनावों के नतीजों ने तय कर दिया है कि अगले मंत्रिमंडल फेरबदल में गहलोत गुट का दबदबा कायम रहने की उम्मीद है। वहीं, संगठन की कमान भी गहलोत के करीबी गोविंद सिंह डोटासरा के पास ही रहने का दबाव ज्यादा मजबूत हुआ है।
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गहलोत सरकार के दिसंबर में तीन साल
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि सीएम अशोक गहलोत के मास्टर स्ट्रोक से भाजपा के साथ सचिन पायलट भी चित हो गए हैं। पंचायत चुनाव और उपचुनावों में जबरदस्त जीत हासिल कर उन्होंने पार्टी आलाकमान को भी अपनी ताकत का अहसास करवा दिया है। राज्य में अब सचिन पायलट की आगे क्या भूमिका होगी इस पर प्रश्न उठाए जा रहे हैं| राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार को आगामी दिसंबर माह में तीन वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। एक तरह से ये उपचुनाव गहलोत सरकार का टेस्ट था, जिसमें वे अच्छे अंकों से पास हुए हैं। तीन साल के बाद भी जनता के बीच में सत्ता विरोधी लहर वाला फैक्टर नजर नहीं आ रहा है।
दोनों सीटों पर लोगों ने सरकार के कोरोनाकाल के दौरान किए गए कामों और योजनाओं को सराहा और कांग्रेस के पक्ष में मतदान किया है। इन दोनों सीटों के परिणाम अगर कांग्रेस पार्टी के विरुद्ध भी जाते तो भी सरकार के बहुमत पर कोई असर नहीं पड़ता। लेकिन ये दोनों उपचुनाव सरकार की प्रतिष्ठा का सवाल बन गए थे। अगर एक भी सीट कांग्रेस हार जाती तो सीधे गहलोत सरकार के कामकाज पर सवाल उठने लगते।
गहलोत सरकार की लोकप्रियता बरकरार
पंचायत चुनाव और उपचुनावों के परिणामों के बाद गहलोत खेमा पहले के मुकाबले और मजबूत हो गया है। भविष्य में होने वाले मंत्रिमंडल विस्तार में भी गहलोत गुट अब पायलट से आगे ही रहेगा। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पार्टी हाईकमान के तमाम दबावों को दरकिनार कर दो सीटों के उपचुनाव तक मंत्रिमंडल फेरबदल, सरकार और संगठन में नियुक्तियों पर ब्रेक लगा रखा था। गहलोत जानते थे कि अगर दोनों सीटें कांग्रेस जीत जाती है तो सरकार में सचिन पायलट और उनके समर्थकों को भागीदारी देने का पार्टी हाईकमान का दबाव कम हो जाएगा। गहलोत ने ये उपचुनाव जीत कर पार्टी हाईकमान को साफ संदेश दिया कि उनकी सरकार की लोकप्रियता बरकरार है।
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गहलोत और पायलट में सियासी जंग
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि उपचुनाव के नतीजों से साफ हो गया है कि सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर फिलहाल नहीं है। हालांकि 2023 के चुनाव पर इन चुनाव नतीजों के प्रभाव के बारे में कहना बहुत जल्दबाजी होगी। 2018 मे हुए राजस्थान विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने सचिन पायलट को आगे रख कर चुनाव लड़ा था| कांग्रेस बीजेपी को पछाड़ कर चुनाव जीतने में सफल भी हो गई थी| लेकिन कांग्रेस ने पायलट के बजाय अशोक गहलोत को सत्ता सौप दी थी| इसी के बाद से गहलोत और पायलट में सियासी जंग शुरु हो गई थी|